कभी तो मन भरता है उडान बड़ी बड़ी,
कभी ये सहम जाता है सुन लोगों की कही,
ये मन है या है रंग बदलती एक कड़ी,
या है किसी रंगमंच की कलाकारी से भरी,
सुखों की पवन आये तो फुहार ये बने,
जो गम छु भी जाये तो मोम सा पिघल पड़े,
मिले जो साथ अपनों का तो आंधियों में डटे,
वरना तो चकना चूर होके रेत सा बहे,
हे प्रभु ये तेरी कैसी कारीगरी है,
मिटटी के एक ढांचे में रंगों की फुलझड़ी है,
sandhya
Friday, November 26, 2010
Saturday, October 30, 2010
awaz manjil ki
सपने तो बहुत देखे थे अपनी खुली आँखों से, और आज भी देखते है,
जब टुटा एक सपना तो टूट गए हम भी,
लगता था कुछ न कर पाएंगे फिर न उठ पाएंगे,
दिल में फिर भी एक आस छुपी है, फिर उठ ये आवाज़ दबी है,
एक जोश उभर कर आता है, पाऊँगी अपनी मंजिल ये एहसास दिलाता है,
शायद यही है सफलता की निशानी, जिसे मेरी मंजिल कह रही है अपनी जुबानी.
ये बात उस वक़्त की है जब हम कोशिशो के बाद भी असफल हो गए, न कोई समझने वाला, माँ पापा से दूर, पर फिर भी आज की सफलता ही शायद उस वक़्त मुझे हिम्मत देकर बुला रही थी.
जब टुटा एक सपना तो टूट गए हम भी,
लगता था कुछ न कर पाएंगे फिर न उठ पाएंगे,
दिल में फिर भी एक आस छुपी है, फिर उठ ये आवाज़ दबी है,
एक जोश उभर कर आता है, पाऊँगी अपनी मंजिल ये एहसास दिलाता है,
शायद यही है सफलता की निशानी, जिसे मेरी मंजिल कह रही है अपनी जुबानी.
ये बात उस वक़्त की है जब हम कोशिशो के बाद भी असफल हो गए, न कोई समझने वाला, माँ पापा से दूर, पर फिर भी आज की सफलता ही शायद उस वक़्त मुझे हिम्मत देकर बुला रही थी.
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