सपने तो बहुत देखे थे अपनी खुली आँखों से, और आज भी देखते है,
जब टुटा एक सपना तो टूट गए हम भी,
लगता था कुछ न कर पाएंगे फिर न उठ पाएंगे,
दिल में फिर भी एक आस छुपी है, फिर उठ ये आवाज़ दबी है,
एक जोश उभर कर आता है, पाऊँगी अपनी मंजिल ये एहसास दिलाता है,
शायद यही है सफलता की निशानी, जिसे मेरी मंजिल कह रही है अपनी जुबानी.
ये बात उस वक़्त की है जब हम कोशिशो के बाद भी असफल हो गए, न कोई समझने वाला, माँ पापा से दूर, पर फिर भी आज की सफलता ही शायद उस वक़्त मुझे हिम्मत देकर बुला रही थी.
मिस विक्रमादित्य ! तुम्हारा ब्लॉग जगत में घनघोर स्वागत है. अल्लाह तुम पर चिट्ठो के रहम फरमाए. या मेरे मौला या परवरदिगार इस नए लिक्खड़ को बुलंदियों तक पहुचा
ReplyDeleteआमीन
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good
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